झारखंड के 47 मजदूर, जो बेहतर भविष्य की तलाश में कैमरून गए थे, वहां तीन महीने से बिना वेतन के फंसे हुए थे। यह मामला गंभीर तब हुआ जब इन मजदूरों ने राज्य सरकार को अपनी परेशानी से अवगत कराया। बिना उचित पंजीकरण और लाइसेंस के इन मजदूरों को विदेश भेजा गया था, जो Inter-State Migrant Workers Act, 1979 का उल्लंघन है। इस स्थिति ने झारखंड सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी।
सरकार की त्वरित कार्रवाई
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर श्रम विभाग ने तुरंत कार्रवाई शुरू की। 47 में से 11 मजदूरों को सुरक्षित झारखंड लाया गया और उन्हें उनके घरों तक पहुंचाया गया। शेष 36 मजदूरों की वापसी के लिए भी प्रयास जारी हैं। सरकार ने न केवल उनकी वापसी सुनिश्चित करने का प्रयास किया, बल्कि उनके तीन महीने के लंबित वेतन की भी व्यवस्था की।
FIR दर्ज
हजारीबाग, बोकारो और गिरिडीह में मुंबई स्थित कंपनी और कुछ बिचौलियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई। नियंत्रण कक्ष की टीम ने मजदूरों और संबंधित कंपनियों से लगातार संपर्क बनाए रखा। इस प्रयास के परिणामस्वरूप मजदूरों को कुल ₹39.77 लाख का बकाया भुगतान किया गया। इसके अलावा, विदेश मंत्रालय को भी इस मामले की जानकारी दी गई ताकि मजदूरों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित हो सके।
मुख्यमंत्री का संवेदनशील नेतृत्व
मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस घटना पर संवेदनशीलता और तत्परता दिखाई। मजदूरों की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए उनकी मदद के लिए हर संभव कदम उठाए गए। यह झारखंड सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह अपने नागरिकों की सुरक्षा और अधिकारों के लिए हरसंभव प्रयास करती है।
सीख जो हमें मिलती है
यह घटना न केवल सरकार की जिम्मेदारी का उदाहरण है, बल्कि यह भी सिखाती है कि मुश्किल परिस्थितियों में सही नेतृत्व और समर्पित प्रयास से हर समस्या का समाधान संभव है। झारखंड के मजदूरों ने अपनी मेहनत और अधिकारों के लिए आवाज उठाई, और सरकार ने उनकी आवाज सुनी और त्वरित कार्रवाई की।
यह घटना झारखंड सरकार के संवेदनशील और जिम्मेदार नेतृत्व का प्रमाण है, जो अपने नागरिकों की भलाई के लिए तत्पर है। यह हमें यह भी सिखाती है कि जब सरकार और नागरिक मिलकर काम करते हैं, तो हर चुनौती को पार किया जा सकता है।