New Airport in Jharkhand: झारखंड को जल्द ही एक और New Airport की सौगात मिलने वाली है। यह हवाई अड्डा पूर्वी सिंहभूम जिले के धालभूमगढ़ में बनेगा, जिससे न केवल झारखंड बल्कि पूर्वी भारत के समग्र विकास को नई गति मिलेगी। इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण और वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। आइए जानते हैं इस परियोजना के बारे में विस्तार से।

धालभूमगढ़ हवाई अड्डा परियोजना
धालभूमगढ़ में बनने वाला नया हवाई अड्डा न केवल झारखंड बल्कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा के सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए भी एक जीवनरेखा के रूप में काम करेगा। जमशेदपुर से लगभग 60 किलोमीटर और धालभूमगढ़ रेलवे स्टेशन से मात्र 5 किमी की दूरी पर स्थित इस हवाई अड्डे का स्थान रणनीतिक है, जो इसे औद्योगिक और पर्यटन विकास दोनों के लिए आदर्श बनाता है।
इस हवाई अड्डा परियोजना का शिलान्यास 6 साल पहले 24 जनवरी 2019 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास और केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने किया था। शुरुआत में इसके लिए 100 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया था और 2020 तक 72-सीटर विमानों के संचालन का लक्ष्य था। हालांकि, कुछ पर्यावरणीय और भूमि अधिग्रहण संबंधी मुद्दों के कारण परियोजना की प्रगति धीमी हो गई थी।
परियोजना की गति फिर से तेज़
अब सकारात्मक खबर यह है कि पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त (डीसी) ने इस परियोजना को फिर से गति देने के लिए कदम उठाए हैं। हाल ही में उन्होंने एक उच्च-स्तरीय समीक्षा बैठक की, जिसमें धालभूमगढ़ हवाई अड्डे पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुरदा, राखा, केंदाडीह माइंस, फुलडुंगरी रोड, एचसीएल अस्पताल के जीर्णोद्धार और अन्य विकास परियोजनाओं पर विस्तृत चर्चा हुई।
उपायुक्त ने सभी संबंधित विभागों (वन विभाग, राजस्व, अंचल, अनुमंडल और अन्य विभागों) को स्थानीय लोगों के साथ समन्वय बनाकर चरणबद्ध और समयबद्ध तरीके से काम पूरा करने का स्पष्ट निर्देश दिया है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि परियोजना से प्रभावित परिवारों को पूरी पारदर्शिता और संवेदनशीलता के साथ उचित मुआवजा दिया जाए।
धालभूमगढ़ में बनेगा इंटरनेशनल एयरपोर्ट
विशेष बात यह है कि धालभूमगढ़ में जो हवाई अड्डा बन रहा है, वह एक international airport (अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा) होगा, न कि केवल एक घरेलू हवाई अड्डा। यह पूर्वी सिंहभूम जिले को वास्तव में नई उड़ान देगा और पूरे क्षेत्र के आर्थिक विकास में तेज़ी लाएगा।
सामने आ रही चुनौतियां और उनका समाधान
हर बड़ी परियोजना की तरह, इस हवाई अड्डे के निर्माण में भी कुछ चुनौतियां हैं। वर्तमान में परियोजना के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं:
- 79,000+ पेड़ों का मुद्दा: हवाई अड्डे के निर्माण के लिए 79,332 पेड़ों को काटना होगा, जिससे पर्यावरणीय चिंताएं उत्पन्न हुई हैं।
- 99 हेक्टेयर वन भूमि का मुद्दा: जुलाई 2024 में झारखंड वन और पर्यावरण विभाग ने 99.256 हेक्टेयर वन भूमि देने की अनुमति तो दे दी, लेकिन उसके साथ एक शर्त जोड़ दी – इतनी ही प्रतिपूरक भूमि प्रदान करनी होगी।
इन मुद्दों के समाधान के लिए, सितंबर 2024 में केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने विभाग से 19 बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा, जिसमें पेड़ों को काटने के पर्यावरणीय प्रभाव और स्थानीय आबादी को होने वाले लाभ जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल थे।
उपायुक्त ने इन सभी चुनौतियों के त्वरित समाधान पर जोर देते हुए वन प्रमंडल पदाधिकारी सबा आलम अंसारी को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है। ग्राम सभा की प्रक्रिया को पूरा करने, उपयुक्त भूमि की पहचान करने, और प्रतिपूरक वनरोपण के लिए उचित स्थलों को खोजने का कार्य जारी है।
हवाई अड्डे का डिज़ाइन और विकास योजना
धालभूमगढ़ हवाई अड्डे का विकास दो चरणों में नियोजित है:
पहला चरण:
- 240 एकड़ भूमि पर प्रारंभिक विकास
- 1,745 मीटर का रनवे निर्माण
- टर्मिनल भवन का निर्माण
- एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) टावर का निर्माण
- फायर स्टेशन की स्थापना
- एटीआर-72 जैसे मध्यम आकार के विमानों के लिए उपयुक्त बुनियादी ढांचा
दूसरा चरण:
- 545 एकड़ अतिरिक्त भूमि अधिग्रहण
- रनवे का 4,400 मीटर तक विस्तार
- अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास
- उन्नत नेविगेशन और संचार प्रणालियों की स्थापना

धालभूमगढ़ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से क्या होंगे लाभ?
इस हवाई अड्डे का निर्माण पूरा होने पर कई क्षेत्रों में दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेगा:
1. औद्योगिक विकास
- टाटा स्टील, टाटा मोटर्स जैसी बड़ी कंपनियों को बेहतर कनेक्टिविटी
- लघु और मध्यम उद्यमों (एसएमई) के लिए लॉजिस्टिक्स लागत में कमी
- नए निवेश को आकर्षित करने में मदद
- आयात-निर्यात परिचालन में आसानी
2. त्रि-राज्य क्षेत्र के लिए रणनीतिक लाभ
- झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के सीमावर्ती क्षेत्रों को सीधी हवाई कनेक्टिविटी
- रांची और कोलकाता हवाई अड्डों पर निर्भरता में उल्लेखनीय कमी
- ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बेहतर पहुंच
3. पर्यटन क्षेत्र का विकास
- डालमा वन्यजीव अभयारण्य, डिमना झील, और आदिवासी पर्यटन स्थलों की पहुंच में सुधार
- अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए सीधी कनेक्टिविटी
- पूर्वी भारत के पर्यटन सर्किट का विस्तार
4. स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा के क्षेत्र में लाभ
- चिकित्सा आपातकाल मामलों में त्वरित परिवहन
- सुपर-स्पेशलिटी उपचार के लिए यात्रा समय में कमी
- शैक्षिक संस्थानों की वैश्विक पहुंच में वृद्धि
5. रोजगार और आर्थिक प्रभाव
- निर्माण और परिचालन चरणों में हजारों प्रत्यक्ष नौकरियां
- आतिथ्य, परिवहन, और संबंधित सेवाओं में अप्रत्यक्ष रोजगार
- स्थानीय अर्थव्यवस्था में बड़ा बढ़ावा
- संपत्ति के मूल्यों में वृद्धि और रियल एस्टेट क्षेत्र में विकास
विशेषज्ञों की राय
विमानन और आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि धालभूमगढ़ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पूर्वी भारत के आर्थिक परिदृश्य को बदल सकता है।
“पूर्वी भारत में कोलकाता के बाद यह दूसरा प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा होगा, जो न केवल क्षेत्रीय असंतुलन को कम करेगा बल्कि ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ को भी मजबूत करेगा,” एक वरिष्ठ विमानन विशेषज्ञ ने बताया।
आर्थिक विश्लेषकों के अनुसार, “इस हवाई अड्डे से झारखंड के औद्योगिक क्षेत्र में लगभग 35-40% तक लॉजिस्टिक्स लागत कम हो सकती है, जिससे विनिर्माण क्षेत्र और अधिक प्रतिस्पर्धी बनेगा।”
पर्यटन विशेषज्ञ भी इसे “पूर्वी सर्किट पर्यटन” को बढ़ावा देने के लिए एक उत्प्रेरक मानते हैं। “आदिवासी विरासत, वन्यजीव अभयारण्य, और प्राकृतिक सौंदर्य को अब अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए और अधिक सुलभ बनाया जा सकेगा,” एक पर्यटन प्रोत्साहन विशेषज्ञ ने कहा।
क्यों यह हवाई अड्डा इतना महत्वपूर्ण है?
धालभूमगढ़ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा केवल एक परिवहन परियोजना नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक विकास पहल है। कुछ कम ज्ञात कारण जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं:
- रक्षा और रणनीतिक महत्व: पूर्वोत्तर और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पास होने के कारण रक्षा दृष्टिकोण से भी यह हवाई अड्डा महत्वपूर्ण है।
- उड़ान योजना का विस्तार: यह हवाई अड्डा क्षेत्रीय हवाई संपर्क योजना का एक महत्वपूर्ण घटक बनेगा, जिससे टियर-2 और टियर-3 शहरों की कनेक्टिविटी बढ़ेगी।
- कार्गो हब क्षमता: भविष्य में, यह कार्गो परिचालन के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बन सकता है, जिससे पूर्वी भारत से वैश्विक बाजारों तक सीधा निर्यात संभव होगा।
- जलवायु-प्रतिरोधी डिजाइन: नए हवाई अड्डे का डिजाइन प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है।
- डिजिटल एकीकरण: इसे स्मार्ट हवाई अड्डे की अवधारणा के साथ विकसित किया जाएगा, जिसमें डिजिटल समाधानों का व्यापक उपयोग होगा।

समयरेखा और अगले कदम
वर्तमान परिदृश्य में, परियोजना के अगले कदम इस प्रकार हैं:
- वन मंजूरी प्रक्रिया को तेज करना
- भूमि अधिग्रहण और मुआवजा वितरण को अंतिम रूप देना
- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट को पूरा करना
- विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) को संशोधित करना
- निर्माण एजेंसियों को अंतिम रूप देना
अधिकारियों का लक्ष्य है कि इन प्रक्रियाओं को जल्द से जल्द पूरा किया जाए, ताकि वास्तविक निर्माण कार्य शुरू हो सके। जिस गति से अब काम हो रहा है, उससे उम्मीद है कि अगले कुछ वर्षों में झारखंड के आसमान में अंतरराष्ट्रीय उड़ानें उड़ती दिखाई देंगी।
झारखंड के विकास की कहानी में एक नया अध्याय
धालभूमगढ़ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा झारखंड के विकास यात्रा में एक मील का पत्थर साबित होगा। यह परियोजना न केवल हवाई संपर्क प्रदान करेगी, बल्कि पूरे पूर्वी क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का उत्प्रेरक बनेगी।
पर्यावरणीय चुनौतियों और भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों को संवेदनशील और टिकाऊ तरीके से संबोधित करते हुए, यह परियोजना राज्य को वैश्विक मानचित्र पर एक प्रमुख स्थान दिलाने में मदद करेगी।
जैसे-जैसे परियोजना प्रगति करेगी, न्यूजहारखंड.कॉम आपको नियमित अपडेट प्रदान करता रहेगा। हम इस परिवर्तनकारी परियोजना के हर पहलू को कवर करेंगे – चाहे वह निर्माण मील के पत्थर हों, पर्यावरणीय पहल हों, या फिर स्थानीय समुदायों पर इसका प्रभाव हो।