झारखंड के किसान लाह की खेती और खनिज निष्कर्षण जैसे कृषि के वैकल्पिक रूपों की ओर रुख कर रहे हैं, जो कहीं अधिक लाभदायक साबित हो रहे हैं। लाह की खेती में कीड़ों की खेती शामिल है जो एक राल पदार्थ का उत्पादन करती है, जिसका उपयोग डाई, वार्निश और अन्य उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है। इस बीच, खनिज निष्कर्षण में कोयला, लौह अयस्क और बॉक्साइट जैसे खनिजों का निष्कर्षण शामिल है, जो झारखंड में प्रचुर मात्रा में हैं।
लाह की खेती है लाभदायक:
जो किसान लाह की खेती या खनिज निष्कर्षण में स्थानांतरित हो गए हैं, वे उन लोगों की तुलना में काफी अधिक कमा रहे हैं जो पारंपरिक खेती के तरीकों में संलग्न हैं। उदाहरण के लिए, श्याम सुंदर शर्मा नाम के एक किसान, जिन्होंने अपनी जमीन पर लाह की खेती शुरू की थी, अब वह धान उगाने से प्राप्त होने वाले 2-3 लाख रुपये की तुलना में प्रति वर्ष लगभग 6 लाख रुपये कमा रहे हैं।
इसी तरह, सतीश कुमार नाम का एक अन्य किसान, जिसने अपने गांव में कोयले के लिए खनन शुरू किया था, वह अब प्रति दिन लगभग 15,000 रुपये कमा रहा है, जबकि वह खेती से 200-300 रुपये कमाता था।
लाह खेती के कई लाभ:
लेख में यह भी कहा गया है कि लाह की खेती और खनिज निष्कर्षण के किसानों के लिए अन्य लाभ हैं, जैसे वर्षा आधारित कृषि पर उनकी निर्भरता कम करना और स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना।
कुल मिलाकर, ऐसा लगता है कि लाह की खेती और खनिज निष्कर्षण की ओर झुकाव झारखंड में किसानों के भाग्य को बेहतर बना रहा है। जबकि पारंपरिक खेती हमेशा अपना स्थान बनाए रखेगी, यह स्पष्ट है कि कृषि के वैकल्पिक रूप राज्य में किसानों के लिए आवश्यक आय और अवसर प्रदान कर सकते हैं।
झारखंड के किसान अधिक कमाई के लिए लाह की खेती की ओर रुख कर रहे:
झारखंड, प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध राज्य, कृषि क्षेत्र में बदलाव देख रहा है क्योंकि किसान पारंपरिक खेती के लाभदायक विकल्प के रूप में लाह की खेती की ओर रुख कर रहे हैं। लाह कीड़ों द्वारा उत्पादित एक रालयुक्त पदार्थ है जिसका उपयोग कपड़ा, कॉस्मेटिक और फार्मास्यूटिकल्स जैसे विभिन्न उद्योगों में किया जाता है।
हालिया रिपोर्टों के अनुसार, झारखंड में किसान पारंपरिक कृषि की तुलना में लाह की खेती से काफी अधिक आय अर्जित कर रहे हैं। झारखंड के कृषि विभाग के अनुसार, राज्य सालाना लगभग 400 मीट्रिक टन लाह का उत्पादन करता है, और लाह की मांग लगातार बढ़ रही है, जिसमें से अधिकांश का विभिन्न देशों को निर्यात किया जाता है।
कितनी आयेगी लागत:
लाह की खेती के लिए न्यूनतम निवेश की आवश्यकता होती है और इसकी पकने की अवधि लगभग दो से तीन वर्ष होती है। यह छोटे किसानों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, जिनके पास बड़ी जोत नहीं हो सकती है या सिंचाई सुविधाओं तक पहुंच नहीं है। एक एकड़ लाह की खेती से उत्पन्न वार्षिक आय 60,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक हो सकती है, जो उत्पादित लाह की गुणवत्ता और बाजार की मांग पर निर्भर करती है।
झारखंड के एक किसान श्याम सुंदर शर्मा ने दो साल पहले अपनी जमीन पर लाह की खेती शुरू की और तब से उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। वह पारंपरिक खेती से कमाए जाने वाले 2-3 लाख रुपये की तुलना में अब लाह की खेती से प्रति वर्ष लगभग 6 लाख रुपये कमाते हैं।
जोखिम भी है कम:
अधिक आय के अलावा लाह की खेती के अन्य लाभ भी हैं। यह एक कम जोखिम वाली फसल है जिसमें कम श्रम की आवश्यकता होती है और इसका पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, लाह की खेती एक सूखा प्रतिरोधी फसल है, जो इसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में किसानों के लिए एक उपयुक्त विकल्प बनाती है।
लाह की खेती की ओर झुकाव व्यक्तिगत किसानों तक ही सीमित नहीं है। झारखंड सरकार ने भी इस फसल की क्षमता को पहचाना है और किसानों को लाह की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाओं को लागू किया है। सरकार किसानों का समर्थन करने के लिए, अन्य बातों के अलावा, पौध, उपकरण और प्रशिक्षण के लिए सब्सिडी प्रदान करती है।
निष्कर्ष:
अंत में, लाह की खेती झारखंड में पारंपरिक खेती के लिए एक लाभदायक और टिकाऊ विकल्प के रूप में उभरी है। इसकी कम निवेश आवश्यकताओं और उच्च मांग के साथ, इसमें कृषि क्षेत्र को बदलने और किसानों को उच्च आय प्रदान करने की क्षमता है, जिससे समग्र आर्थिक विकास होता है।